Menu
blogid : 409 postid : 6

कांधार दोहराने का इंतजार न करें

janpath
janpath
  • 9 Posts
  • 18 Comments

 
२६  नवंबर, २००८ से २९ नवंबर, २००८ तक मुंबई पर चले आतंकी हमले के अभियुक्त अजमल आमिर कसाब को संभवतः छह मई, 2010  की दोपहर बाद मृत्युदंड की सजा सुना दी जाएगी । यदि ऐसा हुआ, तो आतंकवादी घटनाओं में अब तक फांसी की सजा पाने वाले जिंदा मुजरिमों की संख्या १९ हो जाएगी । 
१२ मार्च, १९९३ को मुंबई में १२ स्थानों पर किए गए सिलसिलेवार विस्फोटों में २५९ लोग मारे गए थे । विस्फोट के शिकार बने लोगों के परिजनों ने पूरे 15 साल इंतजार किया । तब  इस मामले में ३१ जुलाई, २००७ को समाप्त हुई अदालती कार्यवाही में १२ लोगों को मृत्युदंड की सजा सुनाई गई ।

 
२५ अगस्त, २००३ को मुंबई के ही गेटवे आफ इंडिया एवं झवेरी बाजार में हुए विस्फोटों में कुल ५४ लोग मारे गए। इस जुड़वा विस्फोट के शिकार हुए लोगों के परिजनों ने भी करीब छह साल इंतजार किया । कुछ माह पहले ही आए इस मुकदमे के फैसले में भी  तीन लोगों को मृत्युदंड की सजा सुनाई गई । इनमें एक महिला भी शामिल है ।
दिल्ली के लाजपतनगर में १९९६ में हुए कार बम विस्फोट कांड मेंभी कुछ ही दिनों पहले तीन लोगों को मृत्युदंड की सजा सुनाई जा चुकी है । और अब कसाब की बारी है । कसाब को एक से अधिक मामलों में मृत्युदंड की कई सजाएं भी सुनाई जा सकती हैं, जैसे 1993 के विस्फोट मामले में एक-एक अभियुक्त को पांच-पांच सजाएं सुनाई जा चुकी हैं । लेकिन ये सभी सजाएं कागजी ही साबित हो रही हैं ।    
 
कसाब का मामला तो बिल्कुल नया है । उसे अभी हाईकोर्ट – सुप्रीमकोर्ट जाने का अवसर मिलेगा ही (यदि वह जाना चाहे) । लेकिन १२ मार्च , १९९३ के मामले का फैसला आए लगभग तीन साल हो रहा है । उसमें मृत्युदंड की सजा पाए लोगों की फाइल अब तक कहां पहुंची है यह भी पता नहीं चलता । यहां तक कि इस मामले में आजीवन कारावास की सजा पाए 20 लोगों में से भी कुछ लोग खराब स्वास्थ्य के आधार पर जेल से बाहर हैं । इस मामले में 14 साल तक की सजा पाए तो ज्यादातर लोग जमानत पर बाहर हैं ।    दूसरी ओर इन घटनाओं में आतंकियों के हाथों शिकार बने लोगों के परिजन खुद को  ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं ।
 
कसाब सहित अब तक १६ आतंकियों को मृत्युदंड की सजा दिलवा चुके सरकारी वकील उज्ज्वल निकम का मानना है कि कम से कम आतंकवाद की घटनाओं में मृत्युदंड की सजा पा चुके आरोपियों की सजा को जल्दी से जल्दी अमल में लाया जाना चाहिए । ताकि आतंकियों को कड़ा संदेश भेजा जा सके । ऐसे मामले यदि पुनर्विचार के लिए हाईकोर्ट – सुप्रीमकोर्ट जा रहे हों , तो वहां भी उनके त्वरित निस्तारण की व्यवस्था की जानी चाहिए । एवं देश व देशवासियों को बुरी नीयत से नुकसान पहुंचानेवालों की दया याचिका राष्ट्रपति के पास भेजने का तो प्रावधान ही खत्म कर देना चाहिए । निकम का मानना है कि इसके लिए कानून में बदलाव की जरूरत पड़ सकती है ।
 
मेरे विचार से कानून में इस प्रकार के बदलाव के लिए सामूहिक आवाज लोकसभा एवं राज्यसभा के  सांसदों की ओर से उठाई जानी चाहिए । यह एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है । अन्यथा किसी दिन किसी रूबिया सईद अथवा किसी विमान का अपहरण करके  पाकिस्तान में बैठे हाफिज सईद एवं लखवी का कोई चेला अपने गुरुभाई अजमल की मांग कर बैठेगा, और हम उस आतंकी को भी बाइज्जत रिहा करने पर मजबूर होंगे, जो न सिर्फ हमारे दर्जनों देशवासियों की जान ले चुका है,  बल्कि हम उसकी सुरक्षा पर आज भी प्रतिदिन लाखों रुपए खर्च करते जा रहे हैं ।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh